सतना में जला 9 सिर वाले रावण का पुतला,आयोजक बिहारी रामलीला समाज की बड़ी लापरवाही, दर्शक बने माननीयों- समाजसेवियों ने भी नही दिया ध्यान
सतना। विजयादशमी के पर्व पर परंपरागत तरीके से रावण का दहन तो हुआ लेकिन सतना में यह परंपरा चर्चा का विषय बन गई। पौराणिक ग्रंथों में भी उल्लेख है और तमाम कथायें भी रावण को दशानन ही बताती आई है लेकिन सतना में रावण दशानन नही रह गया। लंकाधिपति का एक शीश सतना में आयोजको ने गायब कर दिया। सतना में इस बार दशहरे पर 9 सिर वाले रावण का पुतला जला।
असत्य पर सत्य की विजय के इस प्रतीक पर्व पर यह बड़ी चूक किस से और कैसे हुई ? यह सवाल हर उस शख्स के जेहन में कौंध रहा है जिसने भी राम – रावण संग्राम की कथा सुन अथवा पढ़ रखी है और जिसने भी दहन के लिए रखे गए इस पुतले को देखा। गौरतलब है कि सतना में विजयादशमी पर होने वाले राम – रावण संग्राम की रामलीला का मंचन और रावण दहन के पारंपरिक आयोजन का जिम्मा बिहारी राम लीला समाज संभालता आया है। अपने समाज की झांकी निकालने को लेकर भी बिहारी राम लीला समाज अड़ियल रवैया अपनाता रहा है। शहर में दशहरे के आयोजन और चल समारोह की गरिमा के साथ समझौता भी समाज ने अपनी झांकी को आगे रखने की शर्तों पर कर के जनमानस की भावनाओ को दरकिनार किया।
बड़ा सवाल यह है कि क्या आयोजको ने आंखें बंद कर रखी थीं ? क्या शहर के उन तमाम सभ्य और माननीय माने जाने महानुभावों ने भी आंखों पर पट्टी बांध रखी थी जो रावण वध की लीला के स्थल पर आगे की पंक्तियों में अगुआ बन कर बैठते हैं और खुद को सबसे बड़ा धर्मावलंबी – समाजसेवी दिखाने का कोई अवसर नही चूकते।
आस्था से जुड़े इस आयोजन और उसमे हुई हद दर्जे की इस लापरवाही के लिए दोषियों को क्या सामजिक तौर पर जिम्मेदार ठहराया जाएगा ? क्या पुरौधा बन कर बिहारी राम लीला समाज को हाईजैक किए बैठे लोगों से आस्था के साथ किये गए इस खेलवाड़ पर समाज – धर्म के ठेकेदार कोई सवाल करेंगे ? क्या इस अक्षम्य गलती को क्षमा कर दिया जाएगा ? क्या अग्रिम पंक्ति में बैठने वाले फोटो खिंचवा कर – अखबारों में छपवा कर खामोश बैठ जाएंगे ? या फिर बिहारी राम लीला समाज को चंगुल से बाहर निकाल कर भविष्य में ऐसी पुनरावृत्ति रोकने और सतना के दशहरे का गौरव वापस लाने की दिशा में कोई बड़ा कदम उठाएंगे ?