भले अभी खुश हो लें पर आगे का रास्ता आसान नहीं, ये हैं इकॉनमी की राह में रोड़े

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नई दिल्ली : वित्त वर्ष 2022-23 में देश की इकॉनमिक ग्रोथ ने सात फीसदी के लेवल को पार कर लिया, मगर चालू वित्त वर्ष में GDP ग्रोथ को लेकर आगे की राह आसान नहीं है। इकॉनमिस्ट्स और मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है कि ग्लोबल इकॉनमी के जो हालात नजर आ रहे हैं, उसका असर तो भारत की इकॉनमी पर पड़ेगा ही। इसके अलावा RBI ने 2000 रुपये के नोट को चलन से बाहर करने का जो फैसला किया है, उससे भी इकॉनमी प्रभावित होगी।

थोड़ी सुस्ती की आशंका

रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के चीफ इकॉनमिस्ट डी. के. जोशी का कहना है कि वित्त वर्ष 2023 के लिए GDP ग्रोथ का 7.2% पर रहना यह संकेत देता है कि इकॉनमी उम्मीद से ज्यादा बेहतर रही है। सर्विस और एग्रीकल्चर सेक्टर ने इस तेजी में अहम भूमिका निभाई है। मगर जहां तक चालू वित्त वर्ष का सवाल है तो इसमें अर्थव्यवस्था की चाल धीमी रहकर 6% तक आ सकती है। इसका अहम कारण है दुनिया में बढ़ता इकॉनमिक स्लोडाउन और उसका भारत की इकॉनमी और निर्यात पर असर। ब्याज दरों में बढ़ोतरी का रिस्क भी बना हुआ है। हालांकि, छह फीसदी की जीडीपी ग्रोथ के बावजूद भारत इस वित्त वर्ष में भी सबसे तेजी से बढ़ने वाला जी-20 अर्थव्यवस्था होगा।

मॉनसून पर काफी कुछ निर्भर

इक्रा की चीफ इकॉनमिस्ट अदिति नायर का कहना है कि इस बार मॉनसून कैसा रहेगा, इस बात पर इकॉनमी और महंगाई काफी निर्भर करती है। इसमें दो राय नहीं कि मार्केट में अभी डिमांड बनी हुई है। वित्त वर्ष 2024 में वित्त वर्ष 2023 की तुलना में महंगाई के मध्यम रहने की उम्मीद है जो घरेलू बजट और खपत के लिए सकारात्मक है। हालांकि, यह देखने वाली बात होगी कि होम लोन की EMI किस तरफ जाती है। क्या इसमें और बढ़ोतरी होती है या फिर कटौती। रोजगार कितने आते हैं। सबसे अहम है कि अल नीनो का प्रभाव कितना रहता है।

उम्मीद कायम है
नारेडको के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. निरंजन हीरानंदानी का कहना है कि मौजूदा परिदृश्य के तहत अनुमान से अधिक 6.1% की ग्रोथ हासिल करने से उम्मीदें कायम हैं। देश की इकॉनमी में मजबूती बरकरार है। इसमें हर चुनौती से पार पाने की क्षमता है। उम्मीद है कि आगे महंगाई की दर में नरमी रहेगी। साथ ही ब्याज दरों में नरमी आएगी।

छह महीने के लो पर कोर सेक्टर

अप्रैल में कोर सेक्टर की ग्रोथ में मार्च की तुलना में थोड़ी सी सुस्ती आई है। आठ कोर सेक्टर की ग्रोथ की रफ्तार अप्रैल, 2023 में सुस्त पड़कर 3.5 प्रतिशत रह गई है। यह इसका छह महीने का निचला स्तर है। यह अक्टूबर, 2022 के बाद सबसे सुस्त रफ्तार है। तब कोर सेक्टर का उत्पादन 0.7 प्रतिशत बढ़ा था। मार्च-2023 में आठ कोर सेक्टर की बढ़ने की रफ्तार 3.6 प्रतिशत रही थी। पिछले साल अप्रैल में आठ कोर सेक्टर का उत्पादन 9.5 प्रतिशत बढ़ा था।

इकोनॉमिस्ट एस. के. वेंकटेश का कहना है कि आठ सेक्टर में सुस्ती थोड़ी खटक जरूर रही है। मगर जिस तरह से देश में डिमांड का स्तर है, उससे लगता है कि आगे इसमें तेजी आ सकती है। कॉमर्स मिनिस्ट्री की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पादों और बिजली का उत्पादन घटने से कोर सेक्टर की ग्रोथ मंद पड़ी है। अप्रैल में कोयले का उत्पादन नौ प्रतिशत घटा है। हालांकि, इस महीने में उर्वरक उत्पादन में 23.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इसी तरह इस्पात उत्पादन 12.1 प्रतिशत और सीमेंट उत्पादन 11.6 प्रतिशत बढ़ा है।

राजकोषीय घाटा कम हुआ

पिछले वित्त वर्ष में आमदनी और खर्च के बीच का घाटा संशोधित लक्ष्य के भीतर रहा। केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा बीते वित्त वर्ष 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 6.4 प्रतिशत रहा। वित्त मंत्रालय के संशोधित अनुमान में भी राजकोषीय घाटा इतना ही रहने का लक्ष्य रखा गया था। पिछले वित्त वर्ष में यह 6.7% रहा था। इस तरह से इसमें कुछ कमी आई है। बुधवार को लेखा महा नियंत्रक की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार साल 2022-23 में मूल्य के हिसाब से राजकोषीय घाटा 17,33,131 करोड़ रुपये (अस्थायी) रहा है। बता दें कि सरकार अपने राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए बाजार से कर्ज लेती है। सीजीए ने कहा कि राजस्व घाटा GDP का 3.9 प्रतिशत रहा है। वहीं प्रभावी राजस्व घाटा GDP का 2.8 प्रतिशत रहा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी को पेश आम बजट में 2023-24 में राजकोषीय घाटे को GDP के 5.9 प्रतिशत पर सीमित करने का लक्ष्य रखा है।

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