मैं किताब हूँ!!

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मैं किताब हूँ!!
मैं आज कुछ बताना चाहती हूँ
और सभी को कुछ समझाना ‌चाहती हूँ
इतिहास में हुई भूलों को दिखाना चाहती हूँ
और भविष्य की उज्ज्वल राह बतलाना चाहती हूँ
जिन्हें तुम अपना आदर्श बना सको,
मैं उनसे, तुम्हें मिलाना चाहती हूँ
और सारी उलझनों को सुलझाना चाहती हूँ।
हाँ! मैं किताब हूँ
और तुम्हारा साथ चाहती हूँ
तुमसे मिलना और तुम्हें जगाना चाहती हूँ
सत्य से आत्मबोध कराना चाहती हूँ
और विचारों को उत्कृष्ट बनाना चाहती हूँ
हाँ! मैं किताब हूँ सबके जीवन को,
सफल बनाना चाहती हूँ।

अमित गौतम ‘ऋषि’

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