शल्य चिकित्सा और आचार्य चाणक्य

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शल्य चिकित्सा और आचार्य चाणक्य
―देवेन्द्र सिंह

शल्य क्रिया से शिशुजन्म को “सीजेरियन” कहते हैं और इसको जूलियस सीजर के जन्म से जोड़कर मानते हैं । लोग कहते हैं कि जूलियस सीजर पहला शिशु था , जो शल्य क्रिया से पैदा कराया गया ।

लेकिन जूलियस सीजर से सैकड़ों वर्ष पुर्व भारत में सफल शल्य क्रिया की जा चुकी थी । शल्यक्रिया के फलस्वरूप ही एक बहुत बड़े साम्राज्य ‘मगध ‘ के उत्तराधिकारी और भावी सम्राट् को जन्म दिया गया था ।

महामात्य आचार्य चाणक्य का सम्राट् चन्द्रगुप्त को आदेश था कि वे अपना भोजन अकेले करें और अपने भोजन में से एक ग्रास भी दूसरे को न दें ।

आचार्य चाणक्य सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य को विषपुरुष बना रहे थे , जिसका भान भी सम्राट् चन्द्रगुप्त को नहीं था ।
इस भेद के दो ही जानने वाले थे – स्वयं आचार्य चाणक्य और पाकशाला का प्रमुख । पाकशाला प्रमुख को निर्देश था कि वह सम्राट् का भोजन अकेले , गुह्य ढंग से और अपने हाथों से पकाये । जब सम्राट् भोजन करें , वह स्वयं उपस्थित रहे , सम्राट के शरीर पर होने वाली प्रतिक्रियाओं पर तीक्ष्ण दृष्टि रखे , कुछ भी अनदेखा घटित हो , तो तुरन्त आचार्य को सूचित करे । साथ ही यह भी ध्यान दे कि सम्राट् अपने भोजन का कुछ भी अंश किसी अन्य को न दें । अवशिष्ट भोजन नष्ट कर दिया जाए । वह किसी पशु का भी ग्रास न बनने पाये ।

आचार्य चाणक्य सम्राट चन्द्रगुप्त को क्रमशः सूक्ष्म से तीक्ष्ण विषों का सेवन भोजन में ही करा रहे थे । वह काल अपने शत्रुओं को विभिन्न रासायनिक विषों द्वारा या विषकन्याओं द्वारा मार देने का था । अत्यन्त रूपवती कन्याओं को चुनकर उन्हें विषकन्या बनाया जाता था । उन्हें नृत्य , संगीत , मनोविनोद के अन्यान्य उपांगों का गहन प्रशिक्षण भी दिया जाता था । ये रूपवती कन्याएँ सहज ही किसी को भी आकर्षित कर लेती थीं । इनके भीतर का विष इतना संवेदी होता था कि केवल इनके चुम्बन से ही मृत्यु हो जाती थी ।

आचार्य चाणक्य का यही प्रयास था कि सम्राट् चन्द्रगुप्त के ऊपर भौतिक और रासायनिक तथा विषकन्याओं के विष का प्रभाव न हो । लेकिन वे ऐसे विषपुरुष भी न बन जाएँ कि अपनी रानियों के सम्पर्क में ही न रह सकें ।

एक दिन सम्राट् चन्द्रगुप्त की गर्भवती पत्नी , जिनका गर्भकाल पूरा होने में अभी मासाधिक अवधि शेष थी , अकस्मात सम्राट् के भोजन के समय ही आ उपस्थित हुईं । पट्टराजमहिषी ने सम्राट् के साथ ही भोजन की अभिलाषा व्यक्त की , जिसे सम्राट् ने विनम्रतापूर्वक ठुकरा दिया । साम्राज्ञी हठ कर बैठीं , विवश हो सम्राट् को उन्हें अपने साथ भोजन की अनुमति देनी पड़ी । सम्राट् साम्राज्ञी के अनुरोध की अवहेलना न कर सके ।

यह स्थिति देख वह पाकशाला प्रमुख तत्क्षण आचार्य चाणक्य की कुटिया की ओर दौड़ लिया । वहाँ पहुँच उसने आचार्य को सारी बातें कह सुनाईं । आचार्य ने कहा , अनर्थ हुआ – और अपनी कुटिया से शल्यक्रिया में प्रयुक्त होने वाली तीक्ष्णधार छुरिकायें ले सम्राट् के महल की ओर दौड़ पड़े । साम्राज्ञी अचेत हो रही थीं ।

आचार्य ने तत्क्षण आवश्यक सामग्रियाँ मँगा , वहीं साम्राज्ञी की शल्यक्रिया की और गर्भस्थ शिशु को बाहर निकाल लिया । साम्राज्ञी को विषहीन करने की चिकित्सा और शल्योपरान्त होने वाला उपचार भी किया । आचार्य की योजना से स्वयं सम्राट् भी अनभिज्ञ थे और रानियाँ भी । आचार्य ने उस दिन किसी तीक्ष्ण विष की एक बूँद भोजन में डलवाया था , जिसके सार का एक छोटा-सा अंश गर्भनाल द्वारा बच्चे तक लगभग पहुँच ही गया था । इन घटनाओं के फलस्वरूप जो बच्चा पैदा हुआ , उसका नाम रखा गया “बिन्दुसार ” ।
बिन्दुसार – भारत के भावी सम्राट्
बिन्दुसार ही थे , जो ज्ञात इतिहास के पहले शिशु हैं , जिनका जन्म आचार्य चाणक्य की कुशल शल्यक्रिया द्वारा संपन्न हुआ ।

सम्भवतः आचार्य की योजना उनके अनुसार पूरी हुई होती , तो साम्राज्ञी पर विषप्रभाव न पड़ता ।

 

देवेन्द्र सिंह

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