रज्जू भैया: प्रतिबद्धता के दूसरे रूप!
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आज की दुनिया में प्रतियोगिता, प्रतिस्पर्धा, कैरियर और ऊंचे वेतन को लेकर मारकाट और दौड़ मची हुई है। ऐसे माहौल में जो व्यक्ति उच्च नौकरी पर आसीन हो और जीवन के तमाम भौतिक सुख उसके हिस्से में हो तो वो कभी ऐसी नौकरी को छोड़ने का जोखिम नहीं लेगा।
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लेकिन रज्जू भैया दूसरी ही मिट्टी के बने हुए राष्ट्र सेवक थे। जिस दौर में देश में लोगों को बेहतर शिक्षा, बेहतर नौकरी का अभाव था। उस दौर में रज्जू भैया ने 1960 में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष होते हुए सेवानिवृत्ति लेकर संघ के ज़रिए राष्ट्र निर्माण को अपना जीवन बनाया।
“तब एक-दूसरे बड़े आणविक वैज्ञानिक होमी भाभा ने संघ के तत्कालीन सरसंघचालक गोलवलकर से कहा था, ‘संघ ने आणविक विज्ञान की एक प्रतिभा को छीन लिया है’।”
【 संघ और राजनीति, डॉ राकेश सिन्हा, पृ.143】
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स्वतंत्रता संघर्ष के दौर में अनेकों लोग हुए जिन्होंने धन की लालसा न रखते हुए, नौकरियों को और अपने निजी पेशों को छोड़ा तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष में कूद गए। ये एक बेहद लंबी कतार थी। पर इन कतारों के कुछ लोग स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ऊँचे-ऊँचे पदों पर आसीन हो गए। रज्जू भैया ने इस कतार को स्वतंत्र भारत में भी जीवित रखा। उन्होंने राष्ट्र निर्माण के लिए अपनी नौकरी और अपने पेशे को छोड़ दिया। धन कमाना रज्जू भैया का उद्देश्य नहीं था, उनका जीवन था राष्ट्र का निर्माण।
“जब संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने मेडिकल की शिक्षा पूर्ण की थी तब मध्य प्रांत में मात्र 74 चिकित्सक थे। धनोपार्जन की जगह राष्ट्रीय कार्य में उन्होंने अपना जीवन लगाया। रज्जू भैया ने सफलता के इसी मापदंड को स्वीकार किया।” 【 संघ और राजनीति, डॉ राकेश सिन्हा, पृ.143-144】
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आज विज्ञान के तमाम छात्रों और अध्यापकों को यह बड़ा अचंभित तथ्य लगेगा कि भौतिक विज्ञान के एक प्रोफेसर तथा विभागाध्यक्ष ने राष्ट्र की जड़ों को मजबूत करने के लिए अपना सुखमय भौतिक जीवन छोड़ दिया। महान वैज्ञानिक सी.वी.रमन को रज्जू भैया के भीतर विज्ञान का भविष्य दिखता था लेकिन स्वयं रज्जू भैया अपने भीतर समाज सुधारक, राष्ट्र सेवक को जन्म दे चुके थे।
आपातकाल में भी उन्होंने बेहद बड़ी जिम्मेदारी का निर्वहन किया। जब देश के ऊपर इंदिरा ने आपातकाल थोपा तब रज्जू भैया उत्तर प्रदेश में संघ के विचार को प्रसारित कर रहे थे । आपातकाल में प्रो.गौरव कुमार के नाम से वह भूमिगत होकर तानाशाही ताकत का विरोध कर रहे थे।
“वर्ष 1994 में सरसंघचालक के पद पर मनोनीत होने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में बदलाव की भविष्यवाणी करते हुए कहा, ‘वायुमंडल में हो रहे बदलाव के कारण हिन्दू हितों की चिंता करने वाली सरकार के केंद्र में आने के लक्षण दिख रहे है’।”【 संघ और राजनीति, डॉ राकेश सिन्हा, पृ.144】
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भारत में वामपंथी, सेक्यूलरवादी और लिबरल जमात एसी के कमरों में बैठकर गरीबों के दुःखो पर चर्चा और विमर्श करते हैं पर इसके विपरीत रज्जू भैया सम्भ्रान्त कमरों को छोड़कर ज़मीन पर उतरे ताकि जनता, समाज और राष्ट्र मज़बूत हो सके।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने अपने हिस्से के सम्भ्रांत कमरे त्यागे हुए हैं क्योंकि उनका नेतृत्व डॉ.हेडगेवार और रज्जू भैया जैसे पवित्र व्यक्तित्व करते हैं।
सन्दर्भ ग्रन्थ:-
(1) संघ और राजनीति, डॉ. राकेश सिन्हा, यश पब्लिशर्स ।
(2) राजनीति और धर्मनिरपेक्षता, डॉ. राकेश सिन्हा, सामयिक प्रकाशन।
(3) Understanding RSS, Dr.Rakesh Sinha,Har-Anand Publication.
(4) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नौ दशक ध्येय पथ, (सम्पा.) प्रो.संजय द्विवेदी, यश पब्लिशर्स।
~ राकेश जॉन