इन्हें मौतें नहीं – सरकारी हत्याएँ कहिए..!
~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
सतना जिले की चित्रकूट विधानसभा के मझगवां अंचल के अन्तर्गत आने वाले भट्ठन टोला गाँव में इन ग्यारह – बारह दिनों के अन्दर – अन्दर : कुपोषण, बदतर स्वास्थ्य व्यवस्थाओं, अकर्मण्य प्रशासनिक व्यवस्था एवं राजनैतिक कुचक्र के चलते ‘पांच मौतें’ हो चुकीं हैं। सबके हिसाब से ये ‘सिर्फ़ पाँच मौतें’ है। लेकिन जरा! दिल थामकर सोचिए – क्या यह हमारी समूची व्यवस्था की मौत नहीं है? जिनके साथ बीती उनके दर्द का किसी को अन्दाजा है ?
और जब मौतों का यह सिलसिला नहीं थमा- तब जाकर कहीं प्रशासन जागा। मगर,मझगवाँ विकासखण्ड के जनजातीय बाहुल्य क्षेत्र में नौनिहालों, बुजुर्गों, महिलाओं की ‘मौतें’ सामान्य हो चुकीं हैं। भला, कहिए यह खबर मीडिया में चल गई – अन्यथा किसी को कोई भनक ही नहीं लगती । स्वास्थ्य सुविधाएं का बदहाल ढाँचा और कुपोषण का काल लगातार जीवन लील रहा है।
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट :— https://dainik-b.in/CmEdG5B8Isb
ये खबरें समूचे समाज के लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने की मुनादी है। जो समाज – जो सरकार – जो व्यवस्था अपने नौनिहालों को – आम नागरिकों को नहीं बचा सकती। जो समय पर जनमानस को उपचार नहीं दे सकती । जो विकास के गुम्बद बनाने का पाखण्ड रचते हैं – उन्हें इन मौतों में अपना क्रूर चेहरा देखना चाहिए। इन मौतों के जिम्मेवारों को लानत भेजिए। इन सबको मनुष्य की गिनती से बाहर कीजिए। ये सब जल्लाद हैं।
सत्ताओं और उनके खाए-अघाए नेताओं-मदमस्त अफसरों को इन बच्चों की मौत से कोई फर्क नहीं पड़ता है। उनके लिए इन बच्चों की मौतें सिर्फ आंकड़े हैं। सब अपनी अपनी बचत के लिए कोई न कोई जुगत भिड़ा ही लेंगे । मगर,उन बच्चों का क्या – जो कुपोषण – मृतप्राय स्वास्थ्य व्यवस्थाओं और सरकारी कुचक्र के कारण काल के गाल में समा गए । उन परिवारों का क्या -जिनके घर के चिराग़ हमेशा हमेशा के लिए बुझ गए ? इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? इन मौतों पर क्या किसी का दिल पसीजेगा ? क्या जनजातीय समाज एवं समूचे क्षेत्र की पीड़ा का कभी अन्त होगा ?
हम आजादी का अमृत महोत्सव बड़े ही धूम धाम से मना रहे हैं। मनाना भी चाहिए। मगर, क्या सचमुच में हम आज़ाद हैं? क्या अन्तिम छोर के लोगों के जीवन में हमारे संविधान ने- हमारी सरकारों ने – हमारे प्रशासन ने बदलाव लाए?ये मौतें मरते हुए समाज की निशानी हैं। ये मौतें नहीं हैं – असल में इन्हे सुनियोजित सरकारी हत्याएं कहना चाहिए ?।
अपनी राजनीति चमकाने वाले पाखण्डी नेतागण किस बिल में जाकर छुप गए हैं ? कहाँ गए कुर्ते की बांंह चढ़ाकर – गुर्राने वाले वे जनप्रतिनिधि जो दिन रात जनता की भलाई का दम्भ भरते रहते हैं ? किसी को कोई मतलब नहीं है। सब घड़ियाली आंसू बहाने वाले – क्रूर घड़ियाल हैं। जो केवल जनता का शिकार करना चाहते हैं। उन्हें भला इन बच्चों की मौत से कहां कोई मतलब होगा ?
कहां है गांधी का ग्राम स्वराज? कहां है शिवराज का सुराज और कहां है आजादी का अमृत महोत्सव? कहां है नानाजी का ग्रामोदय? आज , मैं गर्व करूं तो किस बात पर गर्व करूं?
चित्रकूट के वनांचल एवं मझगवां विकासखण्ड में कुपोषण एवं विपन्नता – अशिक्षा – स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली — मृत्यु का रौद्र रुप लेकर ताण्डव कर रही है।
सरकारें- नेतागण – अफसर – जनप्रतिनिधि ; सब अपनी अपनी कमाई एवं धन्धों में जुटे हुए हैं। उन्हें जनता और उनकी समस्याओं से कोई मतलब ही नहीं रह गया है। जब चुनाव आएंगे तो शराब – रुपयों, मुर्गा – बकरा, जात- जमात में ; जनता को गुमराह करके अपनी कुर्सी पा! ही लेंगे। अब,ऐसे में इन गिरोहबाजों को कहाँ कोई फर्क पड़ेगा? ज्यादा होगा तो सब मिलकर शोक – सम्वेदना का एक बयान जारी कर देंगे। और एक दूसरे को बचाते हुए – आरोप प्रत्यारोप की सियासी रोटियां सेंक लेंगे। मगर, हालातों पर सबके सब साइलेंट मोड में चले जाएंगे!
चित्रकूट की पावन भूमि जो भगवान कामतानाथ – मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की कर्मस्थली है। उसकी पीड़ा एवं दयनीय दशा अन्तरात्मा को कंपकंपा देती है। चित्रकूट एवं उसका वनांचल क्षेत्र मझगवां -:जहां जनपद पंचायत केन्द्र है। चित्रकूट का वह केन्द्र जहां भारत रत्न नानाजी देशमुख ने ‘ग्रामोदय’ का व्रत लिया और मध्यप्रदेश एवं उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों की कायाकल्प करने की ठानी। आज वह भूमि अपनी मर्मान्तक पीड़ा से कराह रही है।
कुपोषण के वैश्विक मानकों को ‘इथोपिया’ के रुप में जिस मझगवां विकास खण्ड ने कीर्तिमान रचा है। उसके आगे विकास के सारे स्याह चेहरे बेनकाब हो जाते हैं। सरकार की भारी भरकम योजनाओं , महिला एवं बाल विकास, जनजातीय मन्त्रालय, आंगनवाड़ियों, पोषण अभियानों एवं अनेकानेक कागजी योजनाओं का जो हाल हुआ है- वह बदहाली की गाथा स्वमेव गा! रहा है।
जनप्रतिनिधियों एवं प्रशासन ने कुछ इस प्रकार विकास का खाका खींचा है कि वनांचलों में निवास करने वाले जनजातीय समाज की भूख और प्यास अभी तक नहीं मिट पाई है। कुपोषण रुपी सुरसा बच्चों, बुजुर्गों – मातृशक्तियों सबको अपना शिकार बना रही है। शिक्षा, स्वास्थ्य एवं बेरोजगारी से जूझ रहे वनांचल में विपदाएं अपने पूरे उफान पर हैं। मगर, निकम्मे राजशाही जनप्रतिनिधियों एवं चैन की नींद सोने वाले प्रशासन को इससे रत्ती भर फर्क नहीं पड़ता। कुछ दिन के लिए सरकार और प्रशासन के मातहत जागेंगे। नेतागण अपनी – अपनी प्रेस विज्ञप्तियां जारी कर देंगे। मगर, समूचे क्षेत्र की दशा एवं दिशा सुधारने के लिए क्या कभी कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे ? क्या कभी ऐसा कोई दिन- महीना और साल आएगा – जब ऐसी दुखदायी खबरें न सुनने को मिलें ?