शिवराज सौंपेंगे सिंधिया को मध्यप्रदेश की कमान..!
~सिध्दार्थ शंकर गौतम
10 मार्च को पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. माधवराव सिंधिया की 78वीं जयंती के अवसर पर ग्वालियर-चम्बल अंचल में सत्ता के नए समीकरण बनते दिखे जिससे पुराने और खांटी भाजपाई नेता असमंजस में हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित तमाम बड़े भाजपा नेताओं ने स्व. माधवराव को याद किया और ज्योतिरादित्य सिंधिया की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इससे अंचल सहित पूरे प्रदेश में यह संदेश गया कि अब आने वाला समय ज्योतिरादित्य सिंधिया का है। मीडिया की मानें तो प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हो सकता है और ऐसी स्थिति में ज्योतिरादित्य सिंधिया को बड़ी कमान सौंपी जा सकती है। ऐसी भी अटकलें हैं कि – मुख्यमंत्री शिवराज सिंह स्वयं सिंधिया को प्रदेश की कमान सौंपकर केंद्र की राजनीति में अग्रसर हो सकते हैं।
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर स्वयं सिंधिया के साथ हर सप्ताह ग्वालियर-चम्बल अंचल का दौरा कर रहे हैं। भाजपा के लिए सिंधिया क्यों इतने अहम हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस बार भी सत्ता की चाबी ग्वालियर-चंबल अंचल से ही मिलेगी। दरअसल, दोनों संभागों में विधानसभा की 34 सीटें हैं और ग्वालियर-चंबल अंचल ही ऐसा गढ़ था जिसके कारण कांग्रेस ने 2018 में 33 साल बाद ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। इन 34 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस ने 26 सीटें हासिल की थीं जबकि भाजपा 7 सीटों पर सिमट गई थी और यह करिश्मा हुआ था सिंधिया के कारण।
वैसे भी केंद्रीय नेतृत्व ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर सहज है और उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपने का मन बना रहा है। हालांकि ऐसी स्थिति में भाजपा सहित कांग्रेस में भी खींचतान की स्थिति बन रही है। यदि सिंधिया को प्रदेश में बड़ी कमान सौंपी जाती है तो कांग्रेस में भी भगदड़ मचना तय है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से असंतुष्ट कांग्रेसी सिंधिया का दामन थाम सकते हैं और पहले से कमजोर हो चुकी कांग्रेस वर्तमान स्थिति से भी कमतर हो सकती है। किन्तु मुद्दा यहां भाजपा में बदलते समीकरणों का है जिससे भाजपा का ही एक वर्ग संतुष्ट नहीं है।
ग्वालियर-चम्बल भाजपा में बगावत के आसार :—
ज्योतिरादित्य सिंधिया जब भाजपा में आए थे तो अपने साथ 19 विधायकों सहित कांग्रेस के सैकड़ों नेताओं को भी साथ लाए थे जिनमें ग्वालियर-चम्बल अंचल से सर्वाधिक नेता थे। कमलनाथ सरकार के गिरने के बाद जब उन 19 विधायकों द्वारा छोड़ी गई विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए तो उन सभी 19 पूर्व कांग्रेसी विधायकों को ही भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़वाया गया। 19 नेताओं में से 13 पुनः विधायक बने जिनमें महेंद्र सिंह सिसोदिया, प्रद्युम्न सिंह तोमर, डॉ. प्रभुराम चौधरी, गोविंद सिंह राजपूत, तुलसी सिलावट, सुरेश धाकड़, ओपीएस भदौरिया, राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, कमलेश जाटव, हरदीप सिंह डंग, रक्षा संतराम सिरौनिया, जजपाल सिंह जज्जी और बृजेंद्र सिंह यादव जैसे बड़े पूर्व कांग्रेसी नेता थे। इन 13 जीते विधायकों में से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को 9 विधायकों को मंत्री पद से नवाजना पड़ा था। जो 6 सिंधिया समर्थक नेता उपचुनाव हारे उनमें इमरती देवी, जसवंत जाटव, गिर्राज दंडोतिया, मुन्नालाल गोयल, रघुराज सिंह कंसाना और रणवीर जाटव जैसे बड़े चेहरे थे। हालांकि हार के बाद भी इन्हें निगम-मंडलों में नियुक्त कर इनका राजनीतिक पुनर्वास किया गया किन्तु यहीं से अंचल की भाजपा में क्षोभ उत्पन्न हुआ।
सिंधिया समर्थक जिन नेताओं ने भाजपा के नेताओं को हराया उनमें पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा, बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष जयभान सिंह पवैया, पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह, डॉ. राजेश सोनकर जैसे बड़े नाम थे। कई भाजपा नेताओं की राजनीति ही महल के विरोध पर टिकी थी जो सिंधिया के भाजपा में प्रवेश के साथ ही समाप्त हो गई। यूं तो भाजपा में टिकट का फैसला हाईकमान करता है किन्तु यदि इन सभी वर्तमान सिंधिया समर्थक विधायकों (खासकर मंत्रियों) को पुनः टिकट मिलती है तो भाजपा के कई धाकड़ नेताओं की राजनीति समाप्त हो जाएगी और उन्हें सिंधिया को ही अपना नेता मानना पड़ेगा जो फिलहाल संभव नहीं दिखता। अतः आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा के सामने बगावत थामना भी बड़ी चुनौती है।
ज्योतिरादित्य करेंगे माधवराव का अधूरा सपना पूरा ?
पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गाँधी के अनन्य बाल सखा स्व. माधवराव सिंधिया दो बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे। एक बार तो स्वयं राजीव गाँधी ही उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय कर चुके थे किन्तु दोनों ही बार पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह ने एक बार मोतीलाल बोरा और दूसरी बार दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनवाकर माधवराव का मुख्यमंत्री बनने का सपना तोड़ दिया था। इससे क्षुब्ध होकर एक बार तो माधवराव ने अपनी पार्टी तक बना ली थी किन्तु बाद में उसका विलय कांग्रेस में कर वे पुनः वफादार सिपाही बन गए। भारतीय जनसंघ से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले माधवराव कांग्रेस में कितने मजबूत हो गए थे, यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। माधवराव तो मुख्यमंत्री नहीं बन पाए पर क्या उनका अधूरा सपना पूरा कर पाएंगे ज्योतिरादित्य सिंधिया?
देखा जाए तो जिस प्रकार प्रदेश कांग्रेस में माधवराव को मुख्यमंत्री बनने से रोका गया ठीक उसी प्रकार ज्योतिरादित्य को भी ठाकुर लॉबी ने मुख्यमंत्री बनने से रोक दिया और इसी कारण वे कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा और संघ परिवार में उनकी दादी स्व. विजयाराजे सिंधिया का जो सम्मान है उसका लाभ भी ज्योतिरादित्य को मिल रहा है। यदि यह कहा जाए कि भाजपा नेतृत्व ज्योतिरादित्य को आगे बढ़ाकर उनकी दादी का कर्ज उतार रहा है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर जो अटकलें हैं। उनसे तो यही प्रतीत होता है कि सिंधिया आने वाले समय में यदि प्रदेश के मुख्यमंत्री बन जाएं, तो बड़ी बात नहीं होगी। क्योंकि पिछले कई महीने के राजनीतिक दांव-पेंच इस ओर इशारा कर रहे हैं कि इस बार शिवराज सिंह चौहान और उनके कई करीबी मंत्रियों व विधायकों की स्थिति ठीक नहीं है और जनता भी बदलाव चाहती है। सिंधिया के चेहरे से न सिर्फ मध्य प्रदेश बल्कि महाराष्ट्र और राष्ट्रीय राजनीति में भी भाजपा को दूरगामी लाभ होंगे। हालांकि प्रश्न अब भी वही है- क्या पुराने खांटी भाजपाई नेता और कार्यकर्ता सिंधिया को इतनी आसानी से स्वीकार कर पाएंगे? क्या भाजपा में भी कांग्रेस की गुटबाजी जैसी बीमारी घर करेगी? उत्तर जल्द मिलेंगे और तब सही मायनों में ‘पार्टी विद डिफरेंस’ का चेहरा सामने आएगा।