अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक पर्व माने जाने वाले विजयादशमी (दशहरा) पर्व पर दुनिया भर में दशानन रावण का पुतला दहन कर बुराई के नाश का संकल्प लिया जाता है लेकिन सतना जिले के कोठी कस्बे में इस दिन दशग्रीव रावण की पूजा अर्चना की जाती है। विंध्य क्षेत्र में यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां दशहरा पर भगवान श्रीराम की विजय की खुशी तो मनाई ही जाती है,पूर्वज मान कर दशानन की धूमधाम से पूजा भी होती है। बुधवार को भी यहां दशहरे के दिन लंकाधिपति रावण का पूजन किया गया।
सतना शहर से 22 किमी की दूरी पर स्थित कोठी कस्बे में थाना परिसर के बाजू में लंकाधिपति रावण की विशाल प्रतिमा स्थापित है। दस शीश वाली रावण की यह प्रतिमा लगभग ढाई सौ वर्ष से अधिक पुरानी बताई जाती है। दशहरे पर प्रतिमा और आसपास के स्थल पर सफाई कर रंग रोगन किया जाता है और फिर बैंड – बाजे के साथ समूह में पहुंच कर दशानन की पूजा की जाती है। दशानन पूजा की यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है। अब इस परंपरा के निर्वाह का दायित्व रमेश मिश्रा पूरा कर रहे हैं।
इस बार भी दशहरे पर रमेश मिश्रा अपने परिवार के सदस्यों के साथ बैंड बाजे के साथ पूजन सामग्री लेकर दशानन की प्रतिमा के समक्ष पहुंचे। उन्होंने दशग्रीव को स्नान कराया,चंदन- तिलक लगा कर फूल माला पहनाई,जनेऊ धारण कराया और भोग प्रसाद चढ़ा कर आरती उतारी। विधानपूर्वक पूजा के बाद प्रसाद भी वितरित किया गया।
कोठी निवासी रमेश मिश्रा बताते हैं कि उनके बाबा श्यामराज मिश्रा कोठी रियासत के राजगुरु थे। उनके दौर से वे खुद रावण पूजा देखते आ रहे हैं। बाबा के बाद पिता जी यह परंपरा निभाते रहे और अब यह दायित्व वे पूर्ण कर रहे हैं।
रमेश मिश्रा ने बताया कि रावण गौतम गोत्रीय थे और हमारा भी गोत्र गौतम है,इस नाते रावण हमारे पूर्वज हुए। उनके वंशज होने के कारण हम पीढ़ी दर पीढी रावण पूजा करते आ रहे हैं।
रमेश कहते हैं कि रावण परम ज्ञानी,परम भक्त और महाप्रतापी- बलशाली थे। सब भगवान की लीला थी।
पुजारी रमेश मिश्रा बताते हैं कि 15 वर्ष पहले जब नए थाना भवन का निर्माण होना था तब उन्हें रात में स्वप्न आया कि कोई प्रतिमा तोड़ रहा है।सुबह वे पहुंचे तो जेसीबी लगी थी।जेसीबी ऑपरेटर ने रावण की प्रतिमा पर प्रहार किया तो वहां एक सांप निकल आया। ऑपरेटर काम छोड़ कर हट गया,मजदूरों में भी भगदड़ मच गई। बाद में थाना भवन का निर्माण स्थल परिवर्तित किया गया।