इसी बीच संगठन महामंत्री हितानन्द शर्मा अचानक इन्दौर पहुंचे। उन्होंने भाजपा के सभी स्थानीय बड़े नेताओं को तलब किया और लम्बी चर्चायें की। सभी नेताओं से मंथन में पाया गया कि इन्दौर महापौर की सीट को हल्के में लेने के बुरे परिणाम होंगे। मंथन के बादकिया गया कि जिन क्षेत्रों में पार्टी की स्थिति कमजोर है, वहां कोई कसर नहीं छोड़ी जाए। ये सभी क्षेत्र वह हैं जहां पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन कमजोर था। दो और चार विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की तूती बोलती है, लेकिन एक, तीन और पांच नम्बर सीटों पर अल्पसंख्यक वोटर्स की संख्या ज्यादा है।
भाजपा इन्हीं तीन क्षेत्रों पर सबसे अधिक फोकस करने की रणनीति बनाई है। विधानसभा की सीट नम्बर एक से पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए कमजोर थी और पांच नम्बर विधानसभा सीट में भी उसे 2 हजार वोट ज्यादा मिले थे। इसी तरह नम्बर तीन विधानसभा क्षेत्र में भी जीत का अंतर मात्र 8 हजार वोटों से कम था। इसकी सबसे बड़ी वजह इन क्षेत्रों में अल्पसंख्यक वोटर्स का ज्यादा होना है। मुस्लिम वर्ग भाजपा से इसलिए भी नाराज है क्योकि शहर में 10 से ज्यादा मुस्लिम बाहुल्य वार्ड है लेकिन भाजपा ने एक वार्ड से भी मुस्लिम प्रत्याशी को खड़ा नहीं किया है। पांच नम्बर विधानसभा क्षेत्र में आजाद नगर, खजराना, श्रीनगर कांकड़ में मुस्लिम वोटर्स पर कांग्रेस को भरोसा है।
भाजपा के खाते में सबसे बड़ी बात यह जाती है कि शहर का महाराष्ट्रीयन, वैश्य, सिंधी वोट बैंक परम्परागत रूप से भाजपा के साथ है।
इसी बीच कुछ स्थानीय अखबारों के अनुसार कांग्रेस के महापौर प्रत्याशी संजय शुक्ला ने तंग हाल में चुनाव लड़ रहे कुछ कांग्रेसी प्रत्याशियों की आर्थिक मदद की है। कहा जा रहा है कि संजय शुक्ला कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के विश्वास पात्र है। कमलनाथ की वजह से करीब 6 महीनें पहले से संजय शुक्ला का नाम प्रत्याशी पद के लिए तय हो गया था। महापौर पद के चुनाव की लड़ाई जीतने के लिए धन-बल और बादुबल का उपयोग कर चुनाव जीतने की रणनीति तैयार की है। इससे इंदौर के महापौर पद का चुनाव प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गया है। भाजपा इस सीट को जीतने अब ऐड़ी-चोटी का जोर लगायेगी।